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[ १६ ]
निज । सिद्धि संपति हेतु - जिनवर, जाणी भगते उमयो । वधते, देवनायक गहगह्यो || १ ||
विकसंत वदन प्रमोद
॥ ढाल ||
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तन सुरपति जी, घण्टानाद' कराव ए । सुरलोके जी, घोषणा एह दिराव ए ॥ नरक्षेत्रे जी, जिनपर जन्म हुओ अछे । तसु भगते जी, सुरपति मन्दरगिरि गच्छे ||२|
॥ हरिगीत छन्द || [ त्रोटक ]
गच्छेति मन्दर शिखर ऊपर भुवन जीवन जिन तणो । जिन जन्म उच्छव करण कारण, आवजो सवि सुर गणो । तुम शुद्ध समकित थास्ये निर्मल, देवाधिदेव निहालताँ । आपणा पातिक सर्व जासे, नाथ चरण पसाला ॥२॥
|| दाल ||
इम साँभलजी, सुखर कोडी बहू मिली । जिन वन्दन जी, मन्दरगिरि साहमी चली ||
१- यहाँ पर उठकर घण्टा बजाना चाहिये ।