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[ १८ ] तिहाँ करिय कदली गेह जिनवर-जननो मज्जनकार ।। वर राखड़ी जिन पाणि वाँधी-दिये इम आशीष । जुग कोड़ा कोड़ी चिरञ्जीवो-धर्म दायक ईश ॥३॥
॥ ढाल ५॥
तर्ज-एकवीसानी जगनायक जी, त्रिभुवनजन हितकार ए। परमातमजी, चिदानन्दधन सार ए॥ जिण स्यणी जो, दश दिशि उज्वलता धरे । शुभ लगने जी, ज्योतिष चक्र ते संचरे ॥ जिन जनम्याजी, जिण अवतर माता घरे । तिण अवसर जी, इन्द्रासन पिण थरहरे ॥१॥
॥ हरिगीतछन्द ॥ थरहरे आसन इन्द्र चिन्ते, कवण अवसर ए बण्यो। जिन जन्म उच्छवकाल जाणी, अति ही आनन्द ऊपन्यो।
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१-यहाँ प्रभु के सामने के पाटे पर कदली घर यानी अक्षतों का
साथिया वनाना। २-यहाँ पर मौली प्रभु प्रतिमा के दायें हाथ की कलाई पर
धरना।