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वृहत् पूजा-संग्रह
॥ द्वितीय चन्दन पूजा ॥ ॥ दोहा ॥
जन मानस दुख दहकता, पाप ताप भरपूर । प्रभु चन्दन पूजा विधि, सहज समाधि सनूर ॥१॥ दुःख असातावेदनी, वश मन मूर्च्छा रोग । प्रभु चन्दन पूजा रसे, शान्त वढे शिव भोग ॥२॥
सुविहित
प्र० ॥ १ ॥
( तर्ज - थारी गई रे अनादि नींद० राग माढ ) प्रभु चन्दन पूजा योग, रोग मिट जाना है सही । निज शान्त समाधि विचार सार, सुख आना है सही || || प्राणभिसार प्रभु वैद्य मिले हैं, आराधो यही । विधि पथ्य विधान सदा शिव, साधो तो सही ॥ अब निदान निश्चित जीवन में आया है यही । पर को दुख देकर लेश आत्म सुख पाया है नहीं ॥ प्र० ॥ २ ॥ मूल भूल यह मिटी जीव को, जाना ही नहीं । दुख ही है दुख का मूल करम, छिटकाना है सही ॥ प्र० ॥ ३ ॥ पुद्गल संगी सुख में फूले, फिरना है नहीं । सम भावी होकर सार तत्व भव तिरना है सही ॥ प्र० ॥ ४ ॥ अनुकम्पा और अभयदान की, महिमा है यही । हो आतम शक्ति अनन्त कहीं भय होता ही नहीं ॥ प्र० ॥ ५ ॥
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