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दर्शनावरणीय कर्म निवारण पूजा
॥ सप्तम नैवेद्य पूजा ॥ ॥ दोहा ॥
प्रभु आगे नैवेद्य घर, मांगू यह भव मे भूख रहे नही, भाव
मरो
मन मोदक मेरे प्रभु अमृत रूप अनूप | नैवेद्य पूजा भाव मे, चाहूँ शासत रूप ॥२॥ (तर्ज-- गिरवरिये रो वासी प्यारो लागे मोरा राजिंदा ) अमरापुर रो वासी प्यारो लागे म्हारा राजिंदा | भव वन वास म्हने अन खारो लागे म्हारा राजिंदा || || अहारक गुण ठाण सयोगी, समुद्घात मे राजिंदा । तीन समय तक सर्व आहारे, रहित अन्त मे राजिंदा || अ० ॥ १ ॥ भव्य नैवेद्य धरो प्रभु दरशन, ध्यान लगाओ राजिदा । ध्याता ध्याने ध्येय एकता, ज्योत जगाओ राजिंदा || अ० ||२|| पर्याप्ता सज्ञी पचेन्द्रिय, सब उपयोगी राजिंदा । छानस्थिक अन्तरमुहुरत मित, दर्शन भोगी राजिंदा ॥ अ० ॥ ३ ॥ केवल ज्ञान सुदर्शन होता, एक समय मिति राजिंदा | वह पाउ फल पा जाउ तब, सादि अनन्त थिति राजिंदा ॥ अ० ॥ ४ ॥ पर्याप्ता चउरिन्द्रि असन्नि, पचेन्द्रिय में राजिन्दा । चक्षु अचक्षु दर्शन दोनों होय उभय में राजिंदा
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वरदान |
भगवान ॥१॥