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वृहत् पूजा-संग्रह अवधिदरसन, धारी प्रभु पूजें चित परसन । केवल दरसन वरिया, वसो नर शिव पुरिया ॥ प्र० ॥ १ ॥ भक्तिमार्ग में नींद निवारो, जागृत जीवन व्रत चित धारो। कर प्रभु पूजन चरिया, वसो नर शिव पुरिया ॥ प्र० ॥ २ ॥ पंचम अंगे सती जयन्ती, सुपन जागरण प्रश्न करती। कर आतम जागरिया, बसो नर शिव पुरिया ॥ प्र० ॥३॥ जीव अजीवाश्रित आश्रम से, होता सम्बन्धित भव भव से। करो करम संवरिया, वसो नर शिव पुरिया ॥ प्र०॥३॥ प्रकृति स्थिति रस वन्ध प्रदेशा, होते होता आत्म कलेशा। चल्ध रूप निरजरिया, सोनर शिव पुरिया || प्र० ॥५॥ कारण वश किरियायें होती, बन्धन परिणति उनसे होती। सावधान निस्तरिया, बसो नर शिव पुरिया ॥ प्र० ॥६॥ दर्शन रोक हटे प्रकटे वह, प्रभु दर्शन आतम दर्शन सह । होते अजर अमरिया, यसो नर शिव पुरिया ।। प्र० ॥ ७ ॥ हरि कवीन्द्र प्रभु दर्शन पाया, परमातम अक्षत गुण गाया। अक्षत गुण अधिकरिया, वसो नर शिव पुरिया ॥ प्र० ॥८॥
॥ काव्यम् ।। कृत्वाऽक्षतैः सुपरिणाम गुणैः प्रशस्तं० ।
मन्त्र-ॐ हीं अहं परमात्मने 'दर्शनावरणीय कर्म समूलोच्छेदाय श्री वीर जिनेन्द्राय अक्षतं यजामहे स्वाहा ।