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बृहत् पूजा-संग्रह
जगाया ॥ पू० ॥ १ ॥ द्रव्ये क्षेत्रे काले भावे, अवधि ज्ञान बताया। दीपक सम तरतमता योगी, क्षायोपशमिक सुझाया || पू० || २ || अनुगामी बर्द्ध मान प्रतिपाती, सेतर छह भेद गाया । रूपी द्रव्य को जाने अवधि, ज्ञानावरण विलाया ॥ पू० ॥ ३ ॥ सुरनारक भव प्रत्यय अवधि, सुर प्रभु पूजा रचाया । सम्यग्दर्शन निर्मल होते, उतरोत्तर शिव पाया ॥ पू० ॥४॥ लब्धि- प्रत्यय नर तिर्यचे, भेद असंख्या दिखाया । सम्यगदर्शन अवधिज्ञानी, मिथ्या विभंग कहाया || पू० || ५ || अवधि द्रव्य अनन्ता देखे, लोक असंख्य लहाया । काल असंख्या भाव अनंता, रूपी विषय विधाया || पू० || ६ || परमावधि होता शिव गामी, निश्चय यह मन भाया । सुख सागर भगवान की सेवा, मेवा दे सुखदाया || पू० ||७|| हरि कवीन्द्र सुपातर मनमें, प्रभु पद स्नेह भराया । तन्मय वृत्ति दीपक ज्योति परमातम लख पाया ॥ पू० ॥ ८ ॥
॥ काव्यं ॥ सम्पूर्ण सिद्धि शिवमार्ग सुदर्शनाया, नन्तात् कर्म तमसां परिभेदनाय । दिव्य प्रकाश करणाय यजामहे श्री, वीरं विशेष गुण दीपक दीपनेन ।
मन्त्र — ॐ ह्रीं अर्ह परमात्मने अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये