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श्री पार्श्वनाथ पंचकल्याणक पूजा ३३५ धरिया ॥ ती० ॥१॥ चन्द्र विशाखा योगी होते, श्रावण सुद आठम शिव परिया ॥ ती० ॥२॥ प्रभु निर्माण हुआ सुर आये, सेद हरप दोनों दिल भरिया ॥ ती० ॥ ३॥ कल्याणक उत्सन सुर रचते, जय जय जय प्रभु तारण तरिया ॥ ती० ॥ ४ ॥ शिवगामी सामी नही आयें, भव में भव सागर निसतरिया ॥ ती० ॥ ५ ॥ एकान्तिक आत्यन्तिक सुख में, ज्योति सरूप अनन्त गुण
॥ ६ ॥ हरि कवीन्द्र प्रभु कारण कर्ता, धन जो अपना आत्म उधरिया ॥ ती० ॥७॥
॥ शार्दूल विक्रीडितम् ॥ कृत्वा कर्मचय क्षयं सयमथो गत्या शिवं सर्वथा, ससार पुनरेति नो जिनपतिः सिद्धश्च बुद्धश्च यः। तं ज्योतिर्मय मात्म-तारणकने निक्षेपितान्तर्मनः सद्रव्यः प्रयजामहे प्रतिदिन श्री पार्चपारंगतम् ।
ॐ ही श्री परमात्मने अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये जन्म-जरा-मृत्यु-निवारणाय श्री पार्यपारंगताय जलादि अष्टद्रव्य यजामहे स्वाहा।