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वृहत् पूजा-संग्रह
चालो० ॥ ८ ॥ गजपद कुडनो नीर लेईने, स्नात्रमहोत्सव करि सुख वरिये || चालो ० || १ || मंगल पूजनारिष्ट निवारक, कृपाचन्द्र शिवपद अनुसरिये || चालो० ॥ १० ॥ अष्टमंगलं यजामहे स्वाहा ॥
मंत्र — ॐ ह्रीं श्रीपर०
॥ कलश ॥
॥ रागनी धन्याश्री ॥ प्रभुजीको सुयश अम्बरघन गाजे । रैवतगिखिरको प्रभु मंडण, नेमिजिनन्द विराजे । तीर्थपतिना गुणगावंतां, रसना सफल कहाजे || प्रभु० ॥ १ ॥ श्री खरतरगण नायक लायक, जिन चारित्र सुरिराजे । गिरनारगिरिनी स्तवनाकीनी, श्रीसंघभक्तिने काजे ॥ प्रभु० ॥ २ ॥ पंचतीर्थनी रचना रंगे, कीनी भविक हितकाजे । दरशन देखत अनुभव प्रकटे, जिमसाक्षात गिरि ठाजे ॥ प्रभु० ॥ ३ ॥ भगवद्द अंगे लालबाग में, सांभल्यो संघ सुकाजे । मुंबई बंदर रहिचोमासो, संपूरण हित काजे ॥ प्रभु० ॥ ४ ॥ सम्बत उगनोसे उपर बहोत्तर, पोष धवल भृगु छाजे । दशमीदिन गिरिना गुण गाया, भावभले सुसमाजे ॥ प्रभु० ॥ ५ ॥ श्री जिनकीर्त्तिरत्न शाखाधर, युक्ति अमृतगुरुराजे | कृपाचन्द्र जिनस्तवना कीनो, निजगुण निर्मल काजे ॥ प्रभु० ॥ ६ ॥ इति श्रीगिरनार तीर्थ पूजा ।