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श्रीगिरनार तीर्थ पूजा ३१५ - - -- ॥ दशम अष्ट मंगल पूजा ॥
- - ॥दोहा॥ दशमी मंगल पूजना, अष्ट मंगल लिखसार । रजतना तदुल लेईने, अखंड उज्वल मनुहार-॥१॥ पुष्पवृष्टि करें सुरगणा, पंचवर्णा सुविशाल ।
योजन भूमडल प्रमित, पूजो जगत दयाल ||२|| । । (तर्ज-पास जिनदा प्रमु मेरे मन वसिया)
चालो भविकजन यात्रा करिये, यात्रा करिशिव संपदा वरिये ॥ चालो० ॥ जीर्णदुर्गना चैत्य जुहारी, तलहहिये जड़ रानि रहिये ॥ चालो० ॥ १॥ श्रेणीसोपान चढी शुभ भावे, नेमिजिनदको ध्यान जो धरिये ॥ चालो० ॥ २ ॥ प्रथम हूँ कमें बिम्ब प्रभुना, अद्भुत आदि प्रलय मन धरिये ॥ बालो० ॥३॥ मेरुवसी पमुहा जिनमन्दिर, निरस निरस भवि मनमा ठरिये ॥ चालो० ॥४॥ यहां अनेक जिनचैत्य नमीने, बीजी टूक जिनचरणकुं करिये ।। चालो० ॥ ५॥ रथनेमिजीको दरस सरसकरी, तृतीय शिखर शासन सुरि सरिये ॥ चालो० ॥ ६ ॥ चौथी नेमिवीर जिनेसर, पंचमी टूक नमी दुख हरिये ॥ चालो० ॥७॥ सहसाबन जिनचरण नमीने, चैत्यप्रवाडको इनपरि करिये ॥