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जैनाचार्य श्री मनिकृपा चन्द्रसूरि विरचित
॥ श्रीगिरनार तीर्थ पूजा ॥ ॥ दोहा ॥
स्वस्ति श्री मगलकरण, थभणपास जिनद । प्रणमी पदपंकज सदा, प्रभुना धरि आनंद || १ || तीरथ जगमांहि घणा, तेहमां अठे विशेष | शेत्रख रेवत गिरि वरु, वर्णन करू हमेरा ॥२॥ || दोहा सोरठा ॥
सोरठ देश सोहामणो, सहुदेशा सिरदार तेमाहि तीरथ प्रगट, श्रीगिखिर गिरनार || ३ || कल्याणक जिहां त्रपथया, दीक्षाज्ञान निर्वाण । नेमिजिणंद बसाणिये, यावत्र कुल नम भाण || ४ || पूजा रचूं गिरिराजनी, मनमां धरि अति सत । पूजानी विधिमेलनी, भाव
अधिक उलस || ५ ॥
॥ ढाल ॥
(तर्ज- पूर्वमुग्न सावनं करिदर्शन पायनम् )
पूर्वमनी शुचियई शुद्ध अनुभा लई, करघरि कलम शुचिल उदारम् हारे अइओ शुचि जलउदार ॥ १ ॥
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