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प्रो शांतिनाथ पंचकल्याणक पूजा
२८३ दंगा शरणे आया, परलो क्यों नहीं आवे ॥मेरा क्षात्र०॥६॥ सच्चा धर्मी उमको कहिये, धर्म लिये मर जावे ॥ मेरा आत्म धरम ना जावे ॥ ७॥
(तर्ज-लावणी) जगत में जिनपर जयकारी, धरम जिनपर का मुखकारी || अंचली।
माज
___ याज कह सुन राजन् प्यारे, कहा मेरा क्यों नहीं धारे। पचाया पारापत जैसे, बचाओ मुझको भी वैसे । मरवा हूँ मैं भूप से, दया करी मुझ तार | दे दो भक्ष्य मेरा मोहे जल्दी, होगा अति उपफार | कहाते तुम उपकारी । जगतमें जिनपर जयकारी ||४||
गग आया नहीं में देना, यदि तमाम ही है देना । कतर मम अपना देऊ, शरण वत्सल में हो लेऊ । इम कही मगवाई तुला, दीनो कबूतर धार! काट काट निन देवी दीनो, मार न कोनो विचार । देगियो पागा भारी। जगत में जिनपर जपकारी || ५ || अतुल TETT TET T
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