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वृहत् पूजा-संग्रह ॥ अं०॥ भय कुछ न कर तूं प्रानी, करनी में रक्षा ठानी। जबतक मेरा जिया है, चाहे मानी या न मानी ।। वस० ॥३॥
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____ मैं भी शरण लिया है, चाहे मानो या न मानो ॥ अं० ॥ राजन् यह भक्ष्य मेरा, देना है धर्म तेरा। दया दान मानिया है, चाहे मानो या न मानो ॥ मैंभी० ॥४॥ दया धर्मी तुम कहाओ, मुझको न क्यों बचाओ । कहना मैं कह दिया है, चाहे मानो या न मानो।। मैं भी० ॥५॥ राजा
शिर जावे तो जावे, मेरा दया धरम ना जावे ॥६०।। दया बिना कोई धरम नहीं है, धर्मका मूल कहावे || मेरा० ॥१॥ दया के कारण ऋषि मुनि तापस, वन में ध्यान लगावे ।। मेरा० ॥२॥ शिर जावे तो जावे, मेरा सत्य धरम ना जावे ॥ अं० ॥ सत्यसे धर्म परीक्षा होवे, जग जय सत्य मनावे ॥ मेरा सत्य० ॥३॥ सत्य प्रभाव जगजन सज्जन, सतियोंके गुण गावे ॥ मेरा सत्य० ॥४॥ सिर जावे तो जावे मेरा क्षात्र धरम न जावे ।। अं० ॥ सच्चा क्षत्री वो है जगमें, शरणागतको बचावे ॥ मेरा क्षात्र० ॥५॥ मैं नहीं