________________
वृहत् पूजा-संग्रह क्षेमंकर श्रीजिनराय विचरे भविजन हर्षाय, करी वल्लभ जिनराज दिदारी ॥ ३० ॥ ६ ॥
॥दोहा॥ वज्रायुध चक्री बन्यो, विजय कियो छै खंड । न्याय सहित पालन करे, प्रजा नहीं कर दंड ॥१॥ यौवराज्य स्थापन कियो, सहस्रायुध कुमार । बैठो एक दिन पर्पदि, साथ सकल परिवार ॥२॥ डरतो१ विद्याधर युवा, शरणे आयो राय । पीछे मारनको कई, आये दिये समझाय ॥३॥ सबने संयम ले लिया, क्षेमकर जिन पास । कर्म खपी मुक्ति गये, हो गई पूरण आस ४॥ वज्रायुध सुत सुत भलो, कनकशक्ति शुभ नाम । संयम लेइ मुक्ति गयो, पायो आतमराम ॥२॥
१ एक दिन चक्रवर्ती राजा वज्रायुध अपने मातहतके राजा सामंत और मंत्री मंडल आदिके साथ सभा में बैठे हुए थे इतनेमें एक युवा विद्याधर कांपता हुआ आकाशसे नीचे उतरा और वत्रायुध की शरण में आया। उसके बाद ही ढाल तलवार हाथ में लिये एक विद्याधरी और गदा हाथ में लिये हुए एक विद्याधर भी आ पहुंचे।