________________
श्री शांतिनाथ पंचकल्याणक पूजा
निज बल तोड पहाडको, वज्रायुध बलवान | चापि वाहिर आइयो, तोडी सुर अभिमान ||४| इस अवसर नढीसरे, हरि१ यात्रा मन धार । नमन विदेहजर जिनकरी जाता देस कुमार ॥५॥
२७५
(वरवा - करवा चाल धन धन वो जगमे )
धन धन वज्रायुध नग्नाथ, जाऊ तुम चरनन पर वारी ॥ अचली || तुम हम भन हो नरनाथ, पंचम भव शांतिनाथ । बनोगे नर३ और तीरथ नाथ, नमन करु चरनन वार हजारी ॥ घ० ||१|| गयो हरि निज स्वर्ग मफार वज्रायुध नगर पधार | किया क्षेमकरने विचार, राज्यका वज्रायुध अधिकारी ||६० ||२|| समये लोकांतिक आय, विनचे क्षेमकर पाय । लेड़ दीक्षा तीर्थ चलाय, करो उपकार जगत उपकारी ॥६०॥३॥ दियो प्रभुने वार्षिकदान, लियो सयम अति सनमान । कियो प्रगट केवलज्ञान, करी क्षय घातीफर्मको चारी ॥ घ० ||४|| वज्री वज्रायुध साथ, उपदेश सुनी जगनाथ । भावे नमी जोरी हाथ, गये निज धाम अतुल मुखकारी ॥०||५|| आतम लक्ष्मी सुपताय,
१२ महाविदेह के तीर्थ को । ३ नरनाथ - चक्री और तोर्घनाथ तीर्थपर ।