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बृहत् पूजा-संग्रह
जानी प्रभु तीरथ, अष्टापदको सधारा । आतम लक्ष्मी निज ऋद्धिसे, वल्लभ हर्ष अपारा ॥ प्र० || ५ || ॥ दोहा ॥ अष्टापद गिरि ऊपरे, दश हजार मुनि साथ |
भक्त चतुर्दश तप कियो,
अनशन दीनानाथ ॥१॥
सुन आए चक्री वहां,
भरत भरत भरतार |
आए सुर परिवार ||२||
आसन कंपे इन्द्र भी अवसर्पिणि अर तीसरे, पक्ष नवाशी शेष | त्रयोदशी वदि माघकी, अभिचि तार विशेष ||३|| वासर पूरव भागमें पर्यकासन धीर । ध्यान शुक्ल वल कर्मको, नष्ट करे वड वीर ॥४॥ कर्म अभावे आतमा, सिद्ध परं पद जास | अजर अमर अज नित्यता, सादि अनंता वास ॥५॥ ॥ धनाश्री ॥
पूजन सुर तरुकंद जिनंद पद पूजन सुर तरुकंद ॥ अंचली || नाभिनंदन परदुखभंजन, रंजन सुरनर वृन्द ॥ जिनंद० || १ || प्रभु निर्वाण महोत्सव कारण, आए चउसठ इंद || जिनंद० || २ || प्रभु संस्कार स्थान में सुखर, रयण मय शुभ करंद || जि० ||३|| नंदीश्वर शाश्वत प्रतिमोत्सव, करी हरि हर्प धरंद || जि० ||४|| प्रभु संस्कार निकट भ्र