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श्री आदीश्वर पंचकल्याणक पूना २५१ भू पावन करते विभु, आए सिद्ध गिरिंद । समवशरणमें चैठके, दे उपदेश जिनन्द ॥२॥ 'पुण्डरीकको उपदिशे, ऋषभदेव भगवान | होगा क्षेत्र सुभावसे, समको पद निर्वान ।। ३ ॥ जिन वानी मानी करी, रहे सहित परिवार । अष्ट करमको चुरके, पहुंचे मोक्ष मझार ॥ ४ ॥
त्य कराया भरतने, शत्रुञ्जय गिरिराज । पुण्डरीक पडिमा युता, थापे श्री जिनराज ॥५॥
॥सोरठ॥ (तर्ज-कुब जाने जादु ढारा) प्रभु आदिनाथ सुखकारा, किया जगजीवन उद्धारा ॥ प्र० ॥ अ० ॥ आदिनरेसर आदि जिनेसर, आदि मुनीसर धारा । आदि तीर्थ प्रवर्तक कहिए, आदि ऋपम अवतारा ॥प्र० ॥ १॥ नाना देशमें विचरे जिनजी, पोधि दान दातारा । तीन लाख साघी गण सोहे, मुनि चउरासी हजारा ।। प्र० ॥ २ ॥ तीन लाख पचास हजारा, श्रावक सुव्रत कारा। पांच लाख चउपन्न सहस्सा, श्रानिका चित्त उदारा ॥ प्र० ॥३॥ चउ विह सघ धर्म में जोडी, जिम लौकिक व्यवहारा । दीक्षा समयसे लास
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