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श्री आदीश्वर पंचकल्याणक पूजा
॥दोहा॥ एक कोड अड लाखका, रोज दिये प्रभुदान । रकनको करते धनी, एक वर्ष का मान ॥१॥ अते वरसीदानके, सुरपति सह परिसार । दीक्षा उत्सव भारसे, करते यह आचार ॥२॥ चतर यदि तिथि अष्टमी, उतरासाढर तार । ग्रहण कियो संयम विभु, त्यागन कर ससार ॥३॥
(त-दिन जीके बीते जाते है) प्रभुदीक्षा लेने जाते है, जाते हैं होते हैं प्रभुदीक्षा० । अचली ॥ नगरी विनीतासे प्रभु निफसी, सिद्धार्थ वनमें आते हैं ॥ प्र० ॥ १॥ बचन विभूपा त्याग अशोके, देव दुष्प प्रभु पाते हैं ।। प्र० ॥ २ ॥ चउमुष्टि किया लोच प्रभुने, सुरपति शेप रसाते हैं | प्र० ॥ ३ ॥ केशनही सुरपति भक्ति से, क्षीरसागर पधराते हैं |प्र०॥४॥ छठ तप सिद्ध नमन करी प्रभुजी, पाप योग चोसिराते है। प्र० ॥ ५ ॥ मनपर्यव उत्पन्न हुओ तप सुर-सुरपति गुण गाते हैं । प्र० ॥ ६॥ आतम लक्ष्मी वल्लभ हर्षे, हरि नदीश्वर जाते हैं। प्र० ॥ ७ ॥