________________
२३८
वृहत् पूजा-संग्रह
॥दोहा॥ आराधी चारित्रको, द्वादश कल्प सधार । आयु सागर दोय बीस, भोग लियो अबतार ॥६॥ पुक्खलबइ विजये हुओ, बज्रसेन नृप जात । बननाम पुण्डरीक्रिणि, जास धारिणी मात ॥२॥ वैद्य जीव ए जालिए, महिधर वाहु सान। जीवसुबाहु सुद्धिका, पीठ गुणाकर जान ॥३॥ महापीठ चौथा सहो, पूर्णभद्रका जीव । ए पांचो बांधव हुए, सुयशा केशव जीव ॥४॥ राजपुत्र अति नेहसे, वज्रनायके साथ । विचरे पूर्व संबंधसं , जिस यति यतिपति नाथ ॥५॥
॥पील ॥ जिनवर नाम करम परमारे, जिनवर तीरथ जग वरताले ॥ जि० अंचली ॥ वज्रसेन लिन समय को जानी, वज्रनाभको राज्य अलाये। लोकांतिक वचने प्रभु वर्षी दान देई दालिद्र हटावे ॥ जि० ॥१॥ दीक्षा लंइ प्रभु विचरन लागे, वज्रनाभ निज राज्य चलावे । वज्रसेन प्रभु केवल पावे, वज्रनाभ चक्री तक थावे ॥ जि० ॥२॥ क्रमसे