________________
२३६
वृहत् पूजा-संग्रह
॥ पनीहारी की चाल ॥ - पूर्व विदेह पुष्कलावती म्हारा बालाजी, लोहार्गल पुरधाम वालाजी । सुवर्णजंधनृप सुत हुओ म्हा० । वज्रजंघ शुभ नाम वा० ॥ १॥ श्रीमती पूर्वभव प्रिया म्हा०, पत्नी हुई तस सार वा० । पितृदिया शुद्ध न्यायसे म्हा०, पाले राज्य उदार वा० ॥ २ ॥ सागरसेन युनिसेन मुनि महा० । केवल ज्ञान उदंत वा० । सुनकर बंधु जानके म्हा०, मनमें अति उलसंत वा० ॥३॥ दीक्षा लेनी ठानके म्हा०, दंपती सूते रात वा० । विष प्रयोगसे पुत्रने म्हा०, मार दिये-मायतात वा० ॥४॥ उत्तर कुरु युगलिक हुए म्हा०, एकसे अध्यवसाय वा० । काल करी दोनों जने म्हा०, सौधर्मे सुर थाय वा० ॥ ५ ॥ धर्म बिना नहीं जीवको म्हा०, अन्य शरण संसार चा० । आतम लक्ष्मी पामिए म्हा०, बल्लभ हर्ष अपार बा० ॥६॥
॥दोहा॥ जंबूद्वीप विदेहमें, क्षिति प्रतिष्ठ मझार । वैद्यसुविधि सुत नामसे, जीवानंद विचार ॥ १ ॥ महिधर केशव तीसरा, नाम गुणाकर जान । चौधा पूरण भद्र है, सुवुद्धि पंचम मान ॥ २ ॥