________________
बारह व्रत पूजा
२२५ विचारा रे ॥ घ० ० ॥१॥ द्रव्यानयन प्रेक्ष प्रयोगे, शब्द रूप अनुसारा। पुद्गल प्रेक्षण प्रभृति सफलना, तजिये दूपण धारा रे ॥ घ० श्र० ॥२॥ परमोत्कृष्ट जघन्य प्रकारे, प्रत्याख्यान प्रचारा । सहु व्रतनो आगमन ए व्रतमें, गुण मणिरयण भण्डारा रे ॥ घ० श्र० ॥ ३ ॥ कर्म कपाय हरीने छेदे, चउगति गेह विहारा। अजरामर धन दे लयो निरमल, कुगल कला करि सारा रे ॥ १० श्र० ॥४॥
॥ दोहा॥ एकादशमी पूजमे, विविध माति नैवेद्य । मेल करो* जिनराजनी, दायक सुख निरवद्य ॥
॥राग कल्याण ॥ (तर्ज-तेरी पूजा वणी हे रसमे । हो ते० ) सेवा सारो श्रावक जिन चरणे ॥ हो से० ॥ टेर ॥ मोदक लपनश्री वरवर, शिता सुरस धृत झरणे । मुक्तचर विद्वादिक बहुतर, नैवेद्य नानावरणे ॥ हो से० ॥ १ ॥ रयणांकित कचन भाजन भरि, मन वच तनु थिर करणे ।
ॐ धरी जिन आगले