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वृहत् पूजा-संग्रह || सप्तम दिशिपरिमाणव्रत पुष्प पूजा ॥
. . . दोहा।। . . . . छट्टो व्रत दिशमानको, गमनागमन निवार । अकुशलता सवि उपसमे, श्रेय संपजे सार ।।
॥राग गयो ।। (तर्ज-सिद्धाचल मंडग स्वामीरे) श्रीशिवसुख संपति परिये रे, भव भय दुख वारण करिये रे। कर दिशिपरिमाण जे चरिये ।। रसीला, भाव विमल दिल धरिये रे, वाला धरिये तो समरस भरिये ॥ र० भा० ॥१॥ अध ऊर्ध्व ने तिरछि वखाणो रे, दिशि विदिशिने तेम प्रमाणो रे, ए छे संकट जलधिनो राणो ॥ २० भा० ॥२॥ ऐमां गमनागमन निवारो रे, ओ छे कुमति दुरति भरतारो रे, इक चक्री लह्यो दुख भारो ॥ २० भा० ॥३॥ ए व्रत शिवसाधन चंडो रे, तुमे भक्जिन एह न खण्डो रे, कहे कुशल कला नित मंडो ॥र० भो० ॥ ४ ॥
॥दोहा॥
भवियण पूजा सातमी, कीजे भक्ति विशाल । ससुरभि नाना जातना, विमल कुसुम भरथाल ।