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वृहत् पूजा-संग्रह ॐ हीं श्रीपरमात्मने अनंतानंत० मैथुनपरिहरणाय दीपं यजामहे स्वाहा । ॥ षष्ठम परिग्रह विरमण व्रत धूप पूजा ॥
॥ दोहा ॥ भवि कीजे व्रत पंचमे, सकल परिग्रह मान । ए मोहादिक सबरनो, भूधर दुखनी खाण ॥
॥राग वसन्त ॥ (तर्ज-अतुल विमल मिल्या, अखण्ड गुणे) सकल भविक भस्या, विमल गुणे वाल्हा, मान परिग्रहनो करो ए ॥ सकल० ॥ टेर ॥ वज्र समान ए सम गिरि भेदन, दोष दिवसपति वासरो ए । स० ॥१॥ धन कण वसन गवादिक पशुनो, धातु निकर तिम जाणिये ए। इत्यादिक नव भेद विधाने, दशवकालिक भाणीये ए ॥ स० ॥ २ ॥ एहने मूल थकी जे हरे नर, तेहने मोक्ष मिले सही ए। सुचिरकाल गृहवास वसे जे, तेहने देशविधे कही ए ॥ स० ॥३॥ नरक निवास इणे विन पाम्यो, मम्मण सेठ ते भापिये ए। भविजन ए व्रत भावथी
लो, कुशल कला निज दाखिये ए || स० ॥ ४ ॥