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ऋषि-मण्डल- पूजा
|| ढाल ||
( तर्ज - हम आये है शरण तिहारे, तुम प्रभु शरणागत तारे ) श्रीनमि जिनवर चरण कमल में, नयन भमर युग
धरिये रे । तिण किय गुण मकरद पानसे चेतन मद मत करिये रे || वारि चेतन० || श्री नमि० ॥१॥ एह चरण कज अहनिश विकसे, परकज निशि कुमलावे रे | वा० प० ॥ ए न चले बलि तुहिन अनलसे, अपर कमल चल जावे रे || वा० श्री० ॥ २ ॥ ए पद कज गुण मधुरस पीवत, जीन अमरता पावे रे || वारि० || अपर कमल रस लोभी मधुकर, कजगत गज गिल जावे रे || वा० श्री० ॥ ३ ॥ परकज निजगुण लच्छिपात्र है, पदकज संपद् देवे । वार्ते पद शिवचन्द जिणिदके, अहनिशि सुरनर सेवे रे ॥ वा० श्री० ॥ ४ ॥
॥ काव्य ॥
सलिल० ॐ ह्रीं श्रीं प० श्रीमत्नमि जिने० ॥ ॥ द्वाविंशति श्रीनेमि जिन पूजा ॥ ॥ दोहा ॥ चानीमम जिन जगगुरु, ब्रह्मचारी - विख्यात । उण च चन्द्रत से tortu मिट जाते ॥
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