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ऋषि मण्डल- पजा
|| काव्य ॥
मलिल० ॐ ह्रीं श्रीं प० श्रीमत् शान्ति जिने० ॥
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॥ सप्तदश श्रीकुन्थ जिन पूजा || ॥ दोहा ॥
मतरम जिनपर दीवसम, मझि भवसागर जाण । भक्ति युक्त नितपूजिये, लहिये अमल विनाण ॥
|| ढाल ||
(तर्ज- अरिहन्त पद नित ध्याइये )
कुथु जिणंद गुण गाइये || चारि० || मन चंछित फल पाइये रे । प्रभु समरण लय लाइये || वारि० ॥ भविभ तजि शिप जाइये रे ॥ कुंधु ॥ १ ॥ भन जलगत निज आतमा || वा० ॥ करुणा उर घरि ताइये रे । चरणकरण उपयोगिता || वा० ॥ ग्रहण करण कुं न्याइये रे || वा० || कु० ॥ २ ॥ ए प्रभु दर्शन जीवने ॥ वा० ॥ अनुमन रसनो दाइये रे । वर शिवचन्द्र विमल वधे, ॥०॥ दिन दिन शोभ सवाइये रे || कु० ॥ ३ ॥
सलिल० ॐ ह्रीं श्री प० श्रीमन्कुथु जिने० ॥