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अपि-मण्डल पूजा आज ॥ मेरे दीन० ॥ न नमूसहु सविकारी देव, कर चरण कमलनी सेव ।। मे० ॥१॥ जैसे सुरमणि करतल पाय, कुण ल्ये काच सकल उलसाय ॥ मे० ॥ तुम सम सुरवर अवर न कोय, हेर हेर जग निरस्यो जोय ॥०॥२॥ प्रभु दर्शन जलधर घनघोर, लखिय नृत्य करे भविजन मोर ॥मा पढ शिवचन्द्र विमल भरतार, शिव वनिता वरे अति सुसकार ॥ मे० ॥३॥
। काव्य ॥ सलिल० ॐ श्री प० ही श्रीमतशीतल जिनेन्द्राय जलं ॥ ॥ एकादश श्री श्रेयांस जिन पूजा ॥
॥ दोहा ॥ श्रीश्रेयांस जिनेन्द्र पद, नदधु ति सलिलाधार । जे ने मज्जन करे, ते शुचि हुई विधुतार ।।
. . ॥राग ॥ (तर्ज-सोहस सुरपति वृपभ रूप करि न्हवण)
श्री श्रेयास जिनेश्वर जगगुरु, इन्द्रियसदन सभद है। जसु वसु विध पूजनसे अरचो, उर धरि परमानन्द है। ए समकित धर श्रावक करणी, हरिणी भविमन रग हे।