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वृहत् पूजा-संग्रह
॥ राग कामोद ॥ (तर्ज- चंपक कैतकि मालती ) सुविधि चरणकज चंदिये ए || अइयो चं० ॥ नंदिये अति चिरकाल । शिव तवारि निकंदिये ए, विवन कंद तत्काल ||१|| आज जन्म सफलो भयो ए ॥ हां अयो स०|| दीठो प्रभु दीदार | तनु मन हग विकसित भयो ए, जिम कज लखि दिनकार ||२|| अमृत जलधर वरसियो ए ॥ हां अइयो व० || भवि उरक्षेत्र मफार । दर्शन सुरतरु ऊगियो ए, शिव फलनो दातार ||३||
॥ काव्य ॥
सलिल० ॐ ह्रीं श्री श्रीमत्सुविधि जिते० ॥
॥ दशम श्रोशीतल जिन श्रोशीतल जिन पूजा || ॥ दोहा ॥
मुझ तन मन शीतल करो, श्रीशीतल जिनराय । तुम समरण जलधारसे, अंतर तपत
पलाय ||
॥ राग घाटो ||
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(तर्ज- दादा कुशल सुरिन्द० )
मेरे दीनदयाल, तुम भये सकल लोक प्रतिपाल । सुणि शीतल जिनवर महाराज, चरण शरण धर्यो प्रभुनो