________________
१७०
वृहत् पूजा-संग्रह
॥ ढाल वीजी ॥ (तर्ज-नित नमिये थिवर मुनिसरा नि०) नित नमिये श्रुतधर मुनिवरा, नि० । अरथे श्रीजिनराज बखाणे, सूत्रे श्रीगुरु गणधरा ॥ नि० ॥ १॥ मेघधुनी जिम भवि जन सुणके, हरखे न्यू केकीवरा। अंग इग्यारे गुणमणि धारक, वारे उपांग उजागरा नि०॥२॥ जगत उद्धारण तूं परमेसर, सकल विमल गुण आगरा । छेद पयन्ना नंदी सेवो, मूल सूत्र भवि गुणकरा ॥नि०॥३॥ श्रुतधारी गौतम गुरु दीवो, पूरवचवद विद्याधरा। पहिलो आचारांग वखाणे, चरण करण गुण सुखकरा ।। नि० ॥ ४ ॥ दूजो खूयगडांग सुणोजे, भेदतिसय तेसठ खरा। तीजो ठाणांग सूत्र विराजे, सुणता पाप मिटे परा ॥ नि० ॥ ५॥ चौथो समवायांग सुहावे, अर्थ अनेक करीवरा। पांचमे भगवइ महिमा करिये, सहस छतीस प्रश्नधरा ॥नि०॥६॥ छट्ठो ज्ञाता अंग सुध्यावो धर्मकथा कहे जिनवरा । सातमो अंग उपासक कहिये, दश श्रावक प्रतिमाधरा || नि० ॥६॥ आठमे अंगे जिनवर दाखे, अंतगड़ केवली मुनिवरा । नवमे अंगे भवि सुन धारो, अनुत्तरवाइ शुभकरा ॥ नि० ॥ ८ ॥ प्रश्न विचार कह्या जिन दशमें, अंगुष्ठादिक शुभ