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वीसस्थानक पूजा
१३५ समाधि दुरित तसु नसियो । मे० ॥ ४ ॥ समिति पंच त्रण गुपति धरे नित, सुरगिरिवरनो धीरज करसियो । जगत जंतु अघ तपत हरण अनुभव अमृतधार वरसियो मे०॥।॥ शुकल अनिल कर्मेन्धन दाहत, जिनसे परगुण परिणति सिसियो । ए मुनितरणि तेज सम दीपत, अमृत सुखामृत्तपान तिरसियो | मे० ॥ ६॥ इन पदमें ऐसे मुनिजनके, समरनते हुय जग अवतंसियो। ए पद सेवी नृपति पुग्दर, भये जगपति जिन हरस उलसियो । मे० ॥ ७ ॥
॥काव्य ॥ सबिंदिया पारनिकारदारी, अझारणा सेमजणोवगारी। महामयातंकगणापहारी, जयो सदा शुद्ध चरितधारी ॥ १ ॥ ॐ ही श्रीचारित्रधारिभ्यो नमः अष्टद्रव्य यजामहे स्वाहा ॥ १७ ॥ ।। अष्टदशभपूर्वश्रुत ग्रहणरूप ज्ञान पूजा ।।
।दोहा ॥ श्रुन अपूर्व ग्रहिये मटा, अष्टादश पट भांहि । हण पद सेकक जन तणा, महु संकट भय जाहि ॥ जेमी उमति निशुद्धना, धार तप करि हाय । नत् अनन गुण शुद्धता, समानी की जोय ॥