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पीसस्थानक पूजा नाणधर, चौदपूरव श्रुत धारी ॥ से० ॥२॥ दशपूर्वि उत्कृष्ट चरणधर, लन्धिवत अणगारी। ए जिन कहिये इन वदनते, भनि हुये जिन अतारी ॥ से० ॥३॥ जिनमदिर विम्म करिय भरावे, पूज करे मनुहारी। वेयावच्च कहिये ए जिनकी, करिये भवजलतारी ॥ से० ॥ ४ ॥ आचारिज परमुख नवपदकी, वेयावच्च विजितारी। भक्तिपूर्व वस्त्रोपध अनजल, देवे गुणविस्तारी ॥ से० || ५ | पंचसय मुनिनी करिय वेयावच्च, पूरवभव व्रतचारी। भरत बाहुबलि चक्रिपदभुन, वल लडो वरी शिवनारी ॥ से० ॥६॥ नंदिपेण सुलसा मुनिजनकी, करीय वेयावच्च सारी । तिनसे स्वर्गलोकमे दुईकी, भईय प्रशसा भारी ।। से० ॥७॥ इत्यादिक मोलमपद उधरे, बहुलभन्य क्रमजारी । तिनमें इन वेयावच्चपढकी, वारि जाउँ वार हजारो ।। से० ॥८॥ नृप जीमूतकेतु सोलमपद, सेवी भये दुसवारी। श्रीजिन हर्ष धरो हरिवंदित, शरणागत निसतारी से०॥६॥
|| काव्य ॥ मणण्णा सन्चातिसया सयाण, सुरासुराधीसर वदियाणं । रविंदु निनामल सरगुणाण, दयात्रशाण हि नमो जिणाण ॥१॥ ॐही श्रीजिनेभ्यो नमः अष्टद्रन्य यजामहे स्वाहा।