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पोसस्थानक-पूजा
१३१ पनरम० ॥२॥ पात्र कह्या द्रव्य भार दुभेदे, द्रव्यलच्छन ए जाना ।। हो भवि प० ।। सर्वोत्तम जत्तम हुवे भाजन, रतनकनक रूपाना ॥ हो भवि प० ॥ २ ॥ मध्यम पात्र कहीजे एहवा, ताम्र धातु निपजाना ॥ हो भवि प० ॥ पात्र लोहादिक अपर जातिना, तेह जघन्य कहाना ॥ हो भवि प०॥३॥ भाव पात्रनो लच्छन कहिये, सुणिये सुगुण सयाना ॥ हो भवि प० ॥ पचम चरणधरे बलि वरते, क्षीणमोह गुणठाना हो भवि प० ॥४॥ रतनपात्र सम ते सर्वोत्तम, पात्र कयां जिन भाना हो भवि० प०॥ प्रार नाण किरियाधर मुनिपर, लाभालाभ समाना ॥ हो भघि प० ॥५। ते काचन भाजन सम कहिये, भाजल तारन याना || हो भवि प० ॥ शुद्ध मन द्वादस नत दरसन धर, तार-पात्र मम जाना ॥ हो भवि प० ॥६॥ शुद्ध समफिनधर श्रेणिक परमुस, रखा अविरति गुणठाणा ॥ हो भवि प० ॥ ताम्रपात सम एहने फाहिये, मारी गुणमणि साना ॥ हो भवि प० ॥७॥ अपर सफलजन मिथ्या दृष्टि, लोहादिक पात्र गिनाना | हो भवि ५० ॥ जिनशासन रगे रंगाना, याचयम सुप्रमाना ।। हो भषि प० ॥८॥ एहने दान दिया शिर लहिये, एह सुपात्र पहिचाना ॥ हो भवि प० ॥ पचदान दशदान निकरमें,