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बृहत् पूजा संग्रह
शिव धरणें || मे० ॥ ७ ॥ तप करियो गुणरयण संवत्सर, खंधक शमता-दरणें ॥ मे० || चउदसहस मुनिमें कह्यो अधिक, धन्नो तप आचरणें ॥ मे० ॥ ८ ॥ वहिरभ्यंतर भेदे ए तप, वार भेद अधिकरण || मे० ॥ वसिने कनककेतु पाम्पो पद, जिनहरपे भवतरण || मे० ॥ ६ ॥
॥ काव्य ॥
लडी सरोजा वलितावणस्स, सरूवसंगग्ग सुपावणस्स । अमंगलानो कुहदुडवरस, णमो नमो निम्मल सत्तवस्स ॥ १ ॥ ॐ ह्रीं श्री तपसे नमः अष्टद्रव्यं यजामहे स्वाहा ॥१४॥ ॥सुपात्रदानाधिकारे पंचदशम गौतमपद पूजा || ॥ दोहा ॥
गौतम गणधर पनरमे, पद सेवो सुप्रसन्न । वलि सहु जिन गणधर नमो, चौदेशे बावन्न || दान सकल जगवश करे, दान हरे दुरितारि । मनवांछित सहु सुख दिये ; दान धरम हितकारि || ॥ राग सोरठा ॥
(तर्ज- तेरी प्रीति पिछानी हो प्रभु
पनरम पद गुण गाना हो भवि । पनरम० । भाव धरी करिये मन रंगे, परम सुपात्रे दाना || हो भवि
मैं )