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वृहत पूजा-संग्रह शमता रस जल झीलता, विशदानंद सुरूप । तिण पाम्या पद सप्तमे, नमो नमो मुनि भूप ।।
॥ राग गुंड मिश्रित भीम मल्हार ॥ (तर्ज-मेघ वरसे भरी पुप्प वादल करी) भक्ति धरि सातमे, पद भजो मुनिवरा, सुखकरा विजित इंद्रिय विकारा। गुण सतावीश, भूषण करि शोभिता, क्षोभिता विकट क्रम सुभट सारा ॥ भ० ॥१॥ चरणसत्तरि परम, करणसत्तरि धरा, शिव करण नाण किरिया प्रधाना। प्रतिदिने दोष, आहारना वरजिता, सप्त चालीश यति धर्म निधाना ॥ भ० ॥ २ ॥ मदन मद भंजता, कुमति जन गंजता, भक्त जन रंजता शांति भरिया । सुमति धरिया सदा, चरण परिया जना, तारिया ज्ञान गंभीर दरिया ॥ भ० ॥ ३ ॥ तृणमणि सम गिणे, चतुर विध धर्मना, परम उपदेश दायक उदारा। बहिरभ्यंतर भिदा, वारविध अति कठिन, तप तपे सकल जीउ अभयकारा || भ० ॥ ४ ॥ वलि अठाचीश, मनहरण गुण लन्धि निधि, सातमे छट्ट गुणठाण वसिया । सप्त भय वारका, प्रवरजिन आगन्या, धारका स्वगुण परिणमन रसिया ॥ भ० ॥ ५॥ पंच परमाद, कल्लोलताकुल महा,