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पीसस्थानक पूजा
११७ विमलाचारी । भव पीजे अमृत सुख पावे, सुर असुरेन्द्र मनोहारी || भा० ॥३॥ हय गय वृप पंचानन सरिखा, करमकद वर तखारी। वासुदेव वासव नृप दिनकर, विधु भंडारि तुला धारी || भा० ॥ ४ ॥ जंयू सीता नदि कांचनगिरि, चरम जलधि ओपम भारी । ए ओपम बहु अतनी जाणो, उत्तराध्ययन कही सारी ॥ भा० ॥ ५ ॥ अमल पंचविंशत्ति गुण मणि निधि, सफल भुवन जन उपकारी। मशय तिमिर हरण वासरमणि, पाप ताप आतप वारी || भा० ॥ ६ ॥ प्रार संख पय भरियो सोहे, तिम ए जान चरण चारी। महेन्द्रपाल पाठकपद सेवी, लहियो जिनपद विजितारी || भा०७॥
॥ काव्य ॥ मनोहि पीबाल कारणाण, णमो णमो पायग वारणाणं । पुरोदि दती इरिणेसराणं निग्धोष सतार पयोहराणं ॥१॥ * ही श्रीउपाध्यायेभ्यो नमः अदम्य यजामहे स्वाहा॥६॥ ॥ सप्तम साधपद पूजा ॥
॥दोहा ॥ जागं जिनपाणी गरम, स्यादवाद गुणात । मुनि कहिये गिर पर्यने, माधे माधु कदत ॥