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वीसस्थानक पूजा
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आचारिज४ गुण गावो । स्थविर पचम पद पुनI रुवझाया तपसि७ नाण८ दसह मन भाया ॥१॥
॥ ऊलालो ॥ मनभाय विनया१० वश्यका ११ मल, शील१२ किरिया १३ जाणिये । तप१४ विविध उत्तम, पात्र १५ वेया, चच्च१६ समाधि१७ वखाणिये । हितकर अपूव नाग संग्रह १८, धरो मन सुजगोश ए| श्रुत भक्ति १६ पुनि तीरथप्रभावन२० एह थानक वीशफ ॥ २ ॥
॥ ढाल ||
एह थानक चीश जग जयकारा, जपता लद्दीये जिनपद सारा । करम निकदे विसवा वीशे, भाख्या जगतारक जगदीशे ॥ ३ ॥
॥ ऊलालो ॥
जगदीश प्रथम, जिणंद जगगुरु, चरम जिनवरजी मुदा । भन तीसरे पद, सकल सेवी, लही जिनपति सपदा ॥ बानीश जिनपर सकल सुखकर, इन्द्र जसु गुण गाइये | हग दोय त्रिण, महु पद जपीने, तीर्थपति पद पाइये ॥ ४ ॥