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पंचपरमेष्ठी - पूजा
भन्य सकलकु ताखा, दे साचो उपदेश | कुमति सदा दूरे करे, सुमति पाले हमेश || ऋद्धि सिद्धि कारण पूजिये, पीले रंग प्रधान । गणधारक गुरु गछपति, जुगप्रधान सुजान ॥
॥ ढाल ॥
चाल - मही जिनंद सुसकारी रे वाला आचारज सुखकारी रे, वाला ॥ आ० ॥ गुण छत्तीस विराज जेहना, परम परम उपगारी रे ॥ वा० आ० || १ || पचाचार विराजत जगमणि, सहम किरण अववारी रे || वा० आ० || प्रतिरूपादिक गुण जस छाजें, मोह माया परिहारी रे || वा० आ० ॥ २ ॥ राग द्वेप दूर निवारे, समता रस भंडारी रे || वा० आ० || क्रोध मान माया नहि जिनके, चिरुथा दूर निनारी रे ॥ वा० आ० ॥ २ ॥ तेज करी सूरज सम शोभित, मिध्यातमके वारी रे || वा० आ० ॥ क्षमा अधिक जगमें जसु राजे, विषय विकार निवारी रे ॥ वा० आ० || ३ || हृदय गभीर महायण निरमल, रूपाधिक मनुहारी रे || वा० आ० ॥ देस जात कुल उत्तम जिनके, मोधा सन नर-नारी रे ॥ चा० आ० ॥ ४ ॥ सुखर
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