________________
६४
वृहत् पूजा संग्रह भाना हो । भ० सि० ॥ ४ ॥ अव्यावाध सुखके तुम रसिये, भव्य सकल सुख दाना हो ॥ भ० सि० ॥ घाति अघाति दूर करीने, जोतमें जोत समाना हो ॥ भ० सि० ५॥ पैंतालीस लख जोजन शिल्ला, उज्जवल वरण कहाना हो ॥ भ० सि० ॥ ऊपर जोजन भाग चोइसमें, सिद्ध प्रसु ठहराना हो ॥ भ० सि० ॥६॥ तिहां श्रीसिद्ध सदा जयवंता, परम गुरु परधाना हो ॥ भ० सि० ॥ अनंत गुणाकर ज्ञान दिवाकर, इनके गुण नित गाना हो ॥ भ० सि. ७ || लब्धि रिद्धि सत्र सिद्धिके दाता; परम इष्ट सुखदाना हो ॥ भ० सि० ॥ धरमविशाल दयाल पसाये, सुमति कहै बुधवाना हो ॥ भ० सि० ८ ॥ ॐ ह्रौं परमात्माने सिद्धपदे अष्टद्रव्यं यजामहे स्वाहा । || तीजी भाचार्य पद पूजा ॥
॥दोहा॥ तीजे पदकुं नित नमु, आचारज गुणवान । गुण छत्तीस विराजता, जिनवरके परधान ॥ प्रतिरूपादिक गुण करी, राजे सूर समान । जातिवंत कुलवंत है, नहि विकथा नही मान ।