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सतरहभेदी-पूजा
८६ नवनिधि सिद्धि आवाजे। सतर सुपूज सुविधि श्रावककी भणी मैं भगति हित काजे ॥ भ० ॥ २ ॥ श्री जिनचन्द्रसूरि सरतर पति, धरम वचन तसु राजै । संवत सोल अढार श्रावण धुरि, पचमी दिवस समाजै ॥भ० ॥३॥ दयाकलश गुरु अमरमाणिक्य वर, तासु पसाये सुविध हुई गाज। कहे साधुकीरति करत जिन सस्तव, सर लीला सुर साज ॥ भ० ॥४॥