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दूसरा प्रकरण ।
विश्वम्-जगत्
| + इतिविचारतः ऐसे विचार से वस्तुतः वास्तव में
निराश्रया आश्रयरहित मयि-मेरे विष न-नहीं
भ्रान्ति-भ्रान्ति स्थितम स्थित है
शान्ता-शान्त हुई है।
भावार्थ । प्रश्न-मुक्ति क्या पदार्थ है ? उत्तर-आनन्दात्मकब्रह्मावाप्तिश्च मोक्षः। आनंद-स्वरूप आत्मा की प्राप्ति का नाम ही मुक्ति है।
प्रश्न-यदि पूर्वोक्त मुक्ति को विचार से जन्य मानोगे, तब मुक्ति भी अनित्य हो जावेगी, क्योंकि जो-जो उत्पत्तिवाला पदार्थ होता है, सो-सो अनित्य होता है-ऐसा नियम है। यदि मुक्ति को विचार से अजन्य मानोगे, तब फिर विचार से रहित पुरुषों की भी मुक्ति होनी चाहिए ?
उत्तर-जनकजी कहते हैं कि वास्तव में तो मेरे में न बंध है, न मोक्ष है, क्योंकि मैं नित्य चैतन्य-स्वरूप हूँ।
प्रश्न-जब कि वास्तविक तुम्हारे में बन्ध और मोक्ष कोई नहीं है, तब फिर शास्त्र के विचार का और गुरु के उपदेश का क्या फल हुआ ?
उत्तर-जो देहादिकों में चित्रकार की आत्म-भ्रान्ति हो रही है, 'मैं देह हूँ' 'मैं इन्द्रिय हूँ' 'मैं ब्राह्मण हूँ' 'मैं कर्ता और भोक्ता-हूँ-' इस भ्रान्ति की जो निवृत्ति है-'न मैं देह हूँ'; और 'न इन्द्रिय हूँ'; 'न मैं ब्राह्मणत्वादि जातिवाला हूँ'; 'न मैं कर्ता और भोक्ता हूँ' किंतु देहादिक से परे इन सबका मैं साक्षी, शुद्ध ज्ञान-स्वरूप हूँ-ऐसा अपने