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साक
३८ अष्टावक्र-गीता भा० टी० स०
पदच्छेदः । साकारम्, अनृतम्, विद्धि, निराकारम्, तु, निश्चलम्, एतत्तत्त्वोपदेशेन, न, पुनः, भवसम्भवः ।। अन्वयः। ___ शब्दार्थ । । अन्वयः।।
शब्दार्थ । रीरादिकों को
एतत्तत्त्वो
इस यथार्य उपदेश से अनृतम्-मिथ्या
पदेशेन । विद्धि-जान
पुनः फिर निराकारम्=निराकार आत्म-तत्त्व की
भवसम्भवः संसार में उत्पति निश्चलम्-निश्चल नित्य
न=नहीं विद्धि-जान
भवति होती है
भावार्थ । हे जनक ! साकार जो शरीरादिक हैं, उनको तू मिथ्या जान । जो मिथ्या होकर बन्ध का हेतु होता है, वही विष के योग्य त्यागने योग्य भी होता है । इसी में एक दृष्टान्त कहते हैं___ एक बनिये के घर में लड़का नहीं होता था। एक दिन रात्रि के समय वह पलंग पर अपनी स्त्री के साथ सो रहा था। उसकी स्त्री ने उस बनिये से कहा कि यदि परमेश्वर हमको एक लड़का दे देवे, तब उसको कहाँ पर सुलावेंगे । बनिया थोड़ा सा पीछे हटा और कहा कि उस लड़के को यहाँ बीच में सूलावेंगे । फिर स्त्री ने कहा कि यदि एक और हो जावे, तब उसको कहाँ पर सुलावेंगे । वह थोड़ासा और पीछे हटकर कहने लगा कि उसको भी बीच में सुलावेंगे । फिर स्त्री ने कहा कि यदि एक और हो जावे, तब उसको कहाँ सुलावेंगे। फिर पीछे हटकर यह कहता ही था कि