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________________ बीसवाँ प्रकरण। . ३८९ रहित मुझ आत्माऽऽनन्द में कर्तृत्व और भोक्तृत्व दोनों नहीं बनते हैं। इसी वास्ते वत्ति-रूप ज्ञान भी मेरे में नहीं है। क्योंकि चित्त के स्फरण से वत्ति-रूप ज्ञान उत्पन्न होता है, सो चित्त का स्फुरण भी मेरे में नहीं है ॥ ५ ॥ । मूलम् । क्व लोकः क्वमुमुक्षुर्वा क्व योगी ज्ञानवान् क्व वा । क्व बद्धः क्व च वा मुक्तः स्वस्वरूपेऽहमद्वये ॥६॥ पदच्छेदः । क्व, लोकः, क्व, मुमुक्षुः, वा, क्व, योगी, ज्ञानवान्, क्व, वा, क्व, बद्धः, क्व, च, वा, मुक्तः , स्वस्वरूपे, अहम् , अद्वये ।। अन्वयः। शब्दार्थ ।। अन्वयः । शब्दार्थ । अहम्-आत्म-रूप योगी-योगी है ? अद्वये अद्वैत क्वकहाँ स्वस्वरूपे अपने स्वरूप में ज्ञानवान् ज्ञानवान् है ? क्व=कहाँ वा=अथवा लोकः-लोक है ? क्व-कहाँ क्व-कहाँ बद्धःबद्ध है ? च और मुमुक्षुः मुमुक्षु है ? वा=अथवा वान्अथवा क्व-कहाँ वव-कहाँ मुक्तःमुक्त है ? ॥ भावार्थ । अद्वैत आत्मा में भूरादि लोक कहाँ हैं ? अर्थात् कहीं नहीं हैं।
SR No.034087
Book TitleAstavakra Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaibahaddur Babu Jalimsinh
PublisherTejkumar Press
Publication Year1971
Total Pages405
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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