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________________ अठारहवाँ प्रकरण | पदच्छेदः । निः स्नेहः, पुत्रदारादौ निष्कामः, विषयेषु, च, निश्चिन्तः, स्वश, रीरे, अपि, निराशः, शोभते, बुधः ॥ अन्वयः । अन्वयः । शब्दार्थ | पुत्रदारादौ पुत्र और स्त्री आदिकों में निःस्नेहः-स्नेह-रहित च = और विषयेषु = विषयों में निष्कामः कामना - रहित ३५९ शब्दार्थ | अपि =और स्वशरीरे अपने शरीर में निश्चिन्तः = चिन्ता - रहित बुधः ज्ञानी शोभते शोभायमान होता है ॥ भावार्थ | विद्वान् जीवन्मुक्त निराश होकर ही शोभा को पाता है । क्योंकि स्त्री- पुत्रादि के स्नेह से वह रहित है, और इसी कारण विषयों में और भोगों में वह निष्काम है । अर्थात् अपने शरीर की स्थिति के लिये भी भोजन आदिकों की चिन्ता नहीं करता है ॥ ८४ ॥ मूलम् तुष्टि: सर्वत्र धीरस्य यथापतितवर्तिनः ! स्वच्छन्दं चरतो देशान्यत्रास्तमितशायिनः ॥ ८५ ॥ पदच्छेदः । " तुष्टिः, सर्वत्र, धीरस्य यथापतितवर्तिनः, स्वच्छन्दम्, चरतः, देशान्, यत्र, अस्तमितशायिनः ॥
SR No.034087
Book TitleAstavakra Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaibahaddur Babu Jalimsinh
PublisherTejkumar Press
Publication Year1971
Total Pages405
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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