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________________ अन्वयः । क्षीणसंवरणे= { सत्रहवाँ प्रकरण । अन्वयः । शब्दार्थ | क्षीण हुआ है संसार न औद्धत्यम् =न अनम्रता है जिसका च=और नरे= मनुष्य विषे हिंसा है न हिंसा न कारुण्यम्न दयालुना है जो वासना - रहित पुरुषों के साथ न द्रोह करता है और नदीन के साथ करुणा करता है, और न शारीरिक सुख के लिय किसी के आगे हाथ बढ़ाता है, और न कभी आश्चर्य को प्राप्त होता है, और न कभी क्षोभ को प्राप्त होता है, वही पुरुष जीवन्मुक्त है ।। १६ ।। मुक्तः जीवन्मुक्त मूलम् । न मुक्तो विषयद्वेष्टा न वा विषयलोलुपः । असंसक्तमनाः नित्यं प्राप्ताप्राप्तमुपाश्नुते ॥ १७ ॥ पदच्छेदः । न विषयद्वेष्टा = न, मुक्तः, विषयद्वेष्टा, न, वा, विषयलोलुपः, असंसक्तमनाः, नित्यम्, प्राप्ताप्राप्तम्, उपाश्नुते || अन्वयः । शब्दार्थ | अन्वयः । { वा= और न दीनता=न दीनता है न आश्चर्यम् =न आश्चर्य है न क्षोभः =न क्षोभ है || भावार्थ । न विषय में द्वेष न विषयों में न विषयलोलुपः = { लोभी है २६९ शब्दार्थ | शब्दार्थ | नित्यम् = सदा असंसक्तमनाः= { आसक्ति-रहित मन हुआ प्राप्ताप्राप्तम्= प्राप्त और अप्राप्त वस्तु को उपाश्नुते = भोगता है |
SR No.034087
Book TitleAstavakra Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaibahaddur Babu Jalimsinh
PublisherTejkumar Press
Publication Year1971
Total Pages405
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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