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सोलहवाँ प्रकरण |
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अनेक बार शिष्यों के प्रति पठन कराओ, अथवा गुरु से पठन करो, पर बिना सबके विस्मरण करने से तुम्हारा कल्याण कदापि नहीं होवेगा, पञ्चदशी में भी कहा है
ग्रन्थमभ्यस्य मेधावी विचार्य च पुनः पुनः । पलालमिव धान्यार्थी त्यजेद ग्रन्थमशेषतः ॥ १ ॥ बुद्धिमान् पुरुष प्रथम ग्रन्थों का अभ्यास करे । फिर पुनः पुनः उनका विचार करे । पश्चात् जैसे चावल का अर्थी पुरुष चावलों को निकाल लेता है, और पयाल को फेंक देता है, वैसे ही वह भी जीवन्मुक्ति के सुख के लिये अभ्यास के पश्चात् सबका त्याग कर देवे ।
प्रश्न-2 - सुषुप्ति में सर्व पुरुषों को स्वतः ही विस्मरण हो जाता है ? यदि सर्व वस्तुओं के विस्मरण करने से ही मुक्ति होती है, तो सब जीवों को मोक्ष हो जाना चाहिए, पर ऐसा तो नहीं देखते हैं ? इसी से सिद्ध होता है कि सर्व का विस्मरण व्यर्थ है ?
उत्तर- सुषुप्ति में यद्यपि विस्मरण हो जाता है, तथापि सबका विस्मरण नहीं होता है, क्योंकि सर्व के अन्तर्गत अज्ञान है, सो अज्ञान सुषुप्ति में बना रहता है, और जीवन्मुक्त को तो अज्ञान के सहित सम्पूर्ण अध्यस्त वस्तुओं का विस्मरण हो जाता है, इस वास्ते जीवन्मुक्ति की इच्छावाले को सर्व वस्तुओं का विस्मरण करना ही उचित है ॥ १ ॥
मूलम् ।
भोगं कर्मसमाधि वा कुरु विज्ञ तथापि ते । चित्तं निरस्तसर्वाशमत्यर्थं रोचयिष्यति ॥ २ ॥