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पन्द्रहवाँ प्रकरण ।
मूलम् ।
एक एव भवाम्भोधावासादस्ति भविष्यति ।
न ते बन्धोऽस्ति मोक्षो वा कृतकृत्यः सुखं चर ॥ १८ ॥ पदच्छेदः ।
एक:, एव भवाम्भोधी, आसीत्, अस्ति, भविष्यति, न, ते, बन्ध:, अस्ति, मोक्षः, व, कृतकृत्य:, सुखम्, चर ॥ शब्दार्थ | अन्वयः ।
अन्वयः ।
शब्दार्थ |
भवाम्भोधौ=
एक: एक
आसीत् तू ही हुआ
च=और
अस्ति हो है
+च=और
कृतकृत्यः =
समुद्र में
समुद्र
कृतार्थ होता
हुआ
भविष्यति तू ही होवेगा
ते-तेरा
बन्धः-बंध
वा-और
मोक्षः =मोक्ष
न नहीं है
त्वम्=तू
सुखम् = सुखपूर्वक चर=विचर
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भावार्थ ।
अष्टावक्रजी कहते हैं कि हे जनक ! इस संसार रूपी में तू सदा अकेला एक आप ही था, और रहेगा ।
प्रश्न - जब मैं ही भवसागर में था, और रहूँगा, तब तो मुझको मोक्ष कदापि नहीं होगा ? किन्तु सदैव बन्ध में ही रहूँगा ?
उत्तर - हे पुत्र ! अभी तक तुम अपने आपको न जानकर बन्ध और मोक्ष के एरफेर में पड़े थे, अब तुम अपने को जान गये हो और भवसागर में अनुस्यूत-रूप करके