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पन्द्रहवाँ प्रकरण |
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संपूर्ण घटपटादिक पदार्थ जड़ हैं । घटपटादिक अपने को नहीं जानते हैं और अपने से भिन्न आत्मा को भी नहीं जानते हैं इसी से वे सब जड़ हैं, हे शिष्य ! तुम ज्ञान और चैतन्य स्वरूप हो ॥ ८ ॥
मूलम् }
गुणैः संवेष्टितो देहस्तिष्ठत्यायाति याति च । आत्मा न गन्ता नागन्ता किमेनमनुशोचसि ॥ १ पदच्छेदः ।
गुणैः संवेष्टितः, देहः तिष्ठति, आयाति याति, च, आत्मा, न, गन्ता, न, आगन्ता, किम्, एनम्, अनुशोचसि ॥
शब्दार्थ | अन्वयः ।
शब्दार्थ |
अन्वयः ।
गुणैः गुणों से संवेष्टित लिपटा हुआ देहः शरीर
तिष्ठति-स्थित है।
+ सः वह आयाति आता है।
और
याति=जाता है।
आत्मा जीवात्मा
नन्न
गन्ता=जानेवाला है।
नन्न
आगन्ता आनेवाला है किम् = किस वास्ते
एनम् = इसके निमित्त अनुशोचन्ति शोचता है ||
भावार्थ ।
हे शिष्य ! इन्द्रियादिकों करके संवेष्टित होकर यह लिंग- शरीर इस लोक में स्थित रहता है । फिर कुछ काल के बाद लोकान्तर को चला जाता है । फिर वहाँ से चला आता है । आत्मा न लोकान्तर को, न देशान्तर को जाता है, न वहाँ से आता है और स्थूल शरीर जन्म लेता और