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________________ १७६ अष्टावक्र गीता भा० टी० स० और शान्तचित्त और स्थिर अन्तःकरणवाला होता है, और श्रम से रहित होकर भी कर्मों से जन्य अर्थों का भोगने वाला नहीं होता है ॥ ५ ॥ मूलम् । नाहं देहो न मे देहो बोधोऽहमिति निश्चयी । कैवल्यमिव संप्राप्तो न स्मरत्यकृतं कृतम् ॥ ६ ॥ पदच्छेदः । न, अहम्, देहः, न, मे, देहः, बोधः, अहम्, इति, निश्चयी, कैवल्यम्, इव संप्राप्तः, न स्मरति, अकृतम्, कृतम् ॥ अन्वयः । अहम् =मैं देहाः शरीर न=नहीं हूँ देह: - देह शब्दार्थ | मे= मेरा न नहीं है बोधोऽहम् = ज्ञानस्वरूप हूँ इति इस प्रकार अन्वयः । शब्दार्थ | कैवल्यम् = विदेह मुक्ति को संप्राप्तः = प्राप्त होता हुआ निश्चयी= { निश्चय करनेवाला पुरुष अकृतं कृतम्= { अकृत और कृत न स्मरति= {नहीं स्मरण करता भावार्थ । पूर्वोक्त साधनों करके युक्त जो ज्ञानी हैं, उनकी दशा को दिखाते हैं
SR No.034087
Book TitleAstavakra Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaibahaddur Babu Jalimsinh
PublisherTejkumar Press
Publication Year1971
Total Pages405
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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