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अष्टावक्र-गीता भा० टी० स०
सर्वनिर्माता सबका पैदा
सवाशा
निश्चयी- 1 पुरुष
पदच्छेदः । ईश्वरः, सर्व निर्माता, न, इह, अन्यः, इति, निश्चयी, अन्तर्गलित सर्वाश:, शान्तः, क्व, अपि, न, सज्जते ।। अन्वयः। ___ शब्दार्थ । | अन्वयः ।
शब्दार्थ।
. (अन्तःकरण में गलित "
| अन्तर्गलित) करनेवाला
3 हो गई हैं सब आशाएँ इह इस संसार में
(जिसकी ईश्वरः ईश्वर है
च-और अन्य दूसरा कोई यस्य आत्मा-जिसका मन न-नहीं है
शान्तः शान्त हुआ है इति=ऐसा
क्व अपि-कहीं भी निश्चय करनेवाला
न-नहीं
सज्जते-आसक्त होता है ।
भावार्थ । प्रश्न-आपने कहा है कि आत्मा की सत्ता करके भावाभाव-विकार उत्पन्न होते हैं, सो आत्मा दो हैं। एक जीवात्मा है, दूसरा ईश्वरात्मा है। दोनों में से किसकी सत्ता करके भावाभाव विकार उत्पन्न होते हैं।
उत्तर-ईश्वरात्मा की सत्ता करके जगत् भर के पदार्थ उत्पन्न होते हैं । जीवात्मा की सत्ता करके शरीर के नख रोमादिक उत्पन्न होते हैं। क्योंकि वह आत्मा अपने शरीरमात्र में ही है और इसी कारण परिच्छिन्न है। उसकी सत्ता करके जगत् के पदार्थ उत्पन्न नहीं हो सकते हैं, और ईश्वर सर्वत्र व्यापक है, और सारे जगत् से बड़ा है। उसकी उपाधि माया भी बड़ी है, इसी वास्ते सर्वत्र ईश्वर की सत्ता