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दशवाँ प्रकरण |
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प्राप्त हुए थे, उनका इस काल में कहीं भी पता नहीं है और इस वर्तमान जन्म में जो मिले हैं, उनका आगे कहीं भी नाम व निशान नहीं रहेगा, इससे यही साबित होता है कि ये सब असत् अर्थात् मिथ्या हैं । जाग्रत् में पदार्थ जैसे स्वप्न में असत् होते हैं और स्वप्न के पदार्थ जैसे जाग्रत् के असत् होते हैं और जैसे सुषुप्ति में दोनों जाग्रत् और स्वप्न असत् होते हैं और सुषुप्ति, जाग्रत् दोनों स्वप्न में असत् होते हैं, क्योंकि एक दूसरे के विरोधी हैं वैसे ही जब मनुष्य अज्ञानरूपी स्वप्न अवस्था से जागकर ज्ञान रूपी जाग्रत अवस्था को प्राप्त होता है, तब उसको सारा जगत् मिथ्या प्रतीत होने लगता है ।
प्रश्न - सांख्यमतवाले जगत् के पदार्थों को नित्य मानते हैं और कहते हैं कि कारण मृत्तिका भी सत्य है, और उसका कार्य घट भी सत्य है । अर्थात् कारण और कार्य दोनों सत्य हैं । यदि घट मृत्तिका में पूर्वसत्य और सूक्ष्मरूप से स्थित न होवे, तो उसकी उत्पत्ति भी न होवे । क्योंकि असत्य की उत्पत्ति सत् से नहीं होती है, इस वास्ते घट सत्य है । इसी तरह और भी संसार के सारे पदार्थ सत्य ही हैं, असत्य कोई पदार्थ नहीं है । कारण सामग्री से घट का प्रादुर्भाव होता है, सामग्री के न होने से घट रूपी कार्य का मृत्तिका - रूपी कारण में ही तिरोभाव रहता है, घट मिथ्या नहीं है ?
उत्तर- त्रिकालाबाध्यत्वे सत्यत्वम् ।
तीनों कालों में जिसका बाध न हो, उसका नाम सत्य