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१३४ अष्टावक्र-गीता भा० टी० स० उधर से एक बरात आती थी। वह संन्यासी खड़ा हो गया और उसने पूछा, यह क्या है ? लोगों ने कहा, यह बरात है। यह जो लड़का घोड़ी पर सवार है, इसकी शादी एक लड़की से होगी। तब उसने पूछा, फिर क्या होगा, तो कहा, जब इसकी स्त्री इसके घर में आवेगी, तब दोनों आपस में विषयानंद को प्राप्त होवेंगे। फिर स्त्री के लड़के पैदा होवेंगे। इतना सुनकर वह संन्यासी चला गया। रास्ते में एक कुएँ पर छाया में सो रहा तब उसने स्वप्न देखा कि मेरी शादी हई है, स्त्री आई है और मैं उसके साथ सोया हूँ। उस स्त्री ने कहा, थोड़ा सा पीछे हटो। जब वह हटने लगा, तब वह धम्म से कुएँ में गिर पड़ा। गिरने की आवाज को सुनकर लोग दौड़कर कहने लगे कि किसने तुझको कुएँ में गिरा दिया है ? उसने कहा, स्वप्न की स्त्री ने मेरे को कुएँ में गिरा दिया है, न मालूम जाग्रत् की स्त्री पुरुषों की क्या दुर्दशा करती होगी। तात्पर्य यह है कि विवेकी के लिये स्त्री साक्षात् नरक का कुण्ड है।
प्रश्न-हे भगवन् ! कर्मकाण्डी कहते हैं कि जिसके पुत्र नहीं है, उसकी गति भी नहीं होती है, इस वास्ते येनकेन उपाय करके पुत्र उत्पन्न करना चाहिए, ऐसा 'देवी-भागवत' में लिखा है।
उत्तर-हे प्रियदर्शन! यह जो तुमने कहा है कि अपुत्र की गति नहीं होती है, सो गति शब्द का क्या अर्थ है। गति शब्द का अर्थ मोक्ष करते हो वा दोनों लोकों का सुख करते हो । यदि गति शब्द का अर्थ मोक्ष करो, तब सब पुत्रवालों की मुक्ति होनी चाहिए और मनुष्य, पशु आदिक सभी ज्ञान के