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- संस्कृतीका-भाषाटीकासहिता। (५९) भा. टी. जिसतरह बहुत सारे काष्ठोंके समूहको अज्ञानी घर मानलेयहै और लोहेको तलवार मानलेयहै तिसीप्रकार आत्माको देहरूप निर्णय करै है ॥ ७४ ॥
यथा वृक्षविपयांसोजलाद्भवति कस्यचित् ॥ तद्वदात्मनि देहत्वं पश्यत्यज्ञानयोगतः॥७५॥ सं. टी. नन्वन्यथा निर्णये किंकारणमितिचेत्तदज्ञानमेवेति सदृष्टांतमाह यथा वृक्षत्यादि द्वादशभिः॥७॥
भा. टी. जिस जलमें वृक्षकी छाया पडै है और अज्ञानी पुरुष उस प्रतिबिम्बकोही साक्षात् वृक्षमान लेय तिसीप्रकार अज्ञानवशसे इस आत्मामें देहका ज्ञान है ।। ७५ ॥
पोतेन गच्छतः पुंसः सर्व भातीवचंच लम् ॥ तद्वदा०॥७६॥ सं. टा. पोतेनेति पोतेन नौकया स्पष्टमन्यत्।।७६॥ भा. टी.जिस प्रकार जिहाजनौकामें चढकर जानेवाले पुरुपको सब चलताहुआ मालूम होय है तिसी प्रकार अज्ञानवशसे इस आत्मामें देहका ज्ञानहै ॥ ७६ ॥
पीतत्वं हियथाशुभ्रदोषाद्भवति कस्यचित् ॥ तद्र० ॥ ७७॥ सं. टी. पीतत्वमिति ॥ ७७॥ .